Who is Guru ?
।।जय श्री यमुने।।शुभप्रभात्।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय
श्री कबीरदास जी का यह दोहा गुरु की खोज को बहुत अच्छे से स्पष्ट करता है। गुरु का अर्थ यह नहीं की जिनसे आपने कंठी ली है सिर्फ वही आपके गुरु है या जिन्होंने आपको पढ़ाया है वही आपके गुरु है। श्री दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरु थे। गुरु का अर्थ यही है जो आपके अवगुणों को दूर कर आपको आपके ही सद्गुणों में ही पूर्ण करे वही गुरु है। लेकिन दीक्षा गुरु जीवन में एक ही होते है। इसलिये यह जरूरी नहीं की आप अपने गुरु जी को एक शरीर रूपी मनुष्य मानें इसलिये कहा गया है-
"अखण्ड मंडलाकारम् व्याप्तं येन चराचरं"
वह जिन्हें आपने अपना गुरु माना या बनाया है उन्हीं का दर्शन अब आपको प्रत्येक प्राणिजगत में भी हो तभी आपका गुरु बनाने का उद्देश्य पूर्ण होगा।
Namaste
Jai shree Yamune
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