Bhagat/भक्त

।। जय श्री यमुने ।।

                     

                                                        शास्त्रों में भक्ति मार्ग बड़ा ही प्रबल और उत्कृष्ट मार्ग है। इस मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को निश्चित ही कृष्ण प्राप्ति होती है। लेकिन यह समझना बहुत जरुरी बन जाता है की भक्त की परिभाषा क्या है?  भक्त के लक्षण क्या है? उसकी निष्ठा कितनी प्रबल है? सीधे तौर पर बोला जाए तो वह कितने पानी में है। यह बहुत आवश्यक है।
                                     एक बार की बात है श्री नामदेव जी जिनका ठाकुर जी से ऐसा संबंध की स्वयं ठाकुर जी साक्षात उनसे बात किया करते थे। एक बार सभी संत एक साथ बैठे हुए थे। उनमें उनके साथ उनके गुरुतुल्य भी एक सन्त साथ में बैठे हुए थे किसी ने कहा  महाराज जी इनमें से कौनसा घड़ा पका हुआ है और कौन अधपका है बतायें। अर्थात कौन पूर्ण भक्त है और कौन अपूर्ण भक्त है। सभी राजी हुए सभी एक पंक्ति में बैठे  उन  सभी के उन सन्त ने हाथ से उनके सर के ऊपर बजा के देखा। अंत में श्री नामदेव जी बैठे हुए थे। उन्होने जैसे ही नामदेव बजाया तो नामदेव जी को क्रोध आ गया और बोले आपको दिखता नहीं हमारे दर्द होता है। वह संत बोले यह घड़ा कच्चा है। यह बात सुनकर नामदेव जी और क्रोधित हुए दौड़ कर भगवान के मंदिर में पहुँचे और ठाकुर जी को सारा वृत्तांत सुनाया ठाकुर जी ने भी कहा की वह सही कह रहे थे। फिर नामदेव जी ने ठाकुर जी से आग्रह किया प्रभु कृपा करो और मुझे पूर्ण भक्त बनाओ। ठाकुर जी के आदेशानुसार से कुछ दूर एक शिव मंदिर में गये वहाँ एक संत शिवलिंग पर अपने चरण रखे बैठे थे।  नामदेव जी ने उनसे कहा आप शिवलिंग पर से पैर हठाईए। सन्त ने मेरी उम्र ज्यादा हो गयी है आप ही उठाकर रख दीजिये। तब उन्होंने जैसे ही पैरों को हठा कर दूसरी जगह रखने की कोशिश की वह शिवलिंग स्वतः ही उनके चरणों के नीचे पहुंच जाता। तब श्री नामदेव जी की भेद दृष्टि का अंत हुआ।
                                     कथा का आशय है की स्वयं नामदेव जी जिन्होंने पहले 52 बार भगवान का साक्षात्कार किया फिर भी उनमें अपूर्णता रह गयी । इसलिए सच्चे भक्त का अर्थ है कहीं भी भेद दृष्टि न रखना सर्वस्व सृष्टि को पूज्यनीय मानना । किसी में भी भेद न करना। भक्ति करना लोहे के चनों को चबाने के समान कठिन है। यह तो भगवान की इच्छा है वह किसे पूर्णता देना चाहते है और किसको नहीं । इसलिये सदा ठाकुर जी से यही प्रार्थना करनी चाहिए की है प्रभु मुझे पूर्ण भक्ति प्रदान करें।        
 

                                                                                                           - आचार्य भुवनेश शुक्ला जी महाराज







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