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।।जय श्री यमुने।। शुभप्रभात्।।
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
एक साधारण सा लोकव्यवहार जिसमें मनुष्य को दूसरे के अवगुण इतनी आसानी से दिख जाते है जिसमें उसे कोई मेहनत ही न करनी पड़ी हो और वहीं उन अवगुणों पर ऐसे हँसता हुआ चला जाता है जैसे वह तो दूध का धुला हुआ हो। लेकिन सत्यता वह जब अपनी ओर देखता है तब उसे अपने अवगुण याद आते है। लेकिन उसमें भी कुछ ऐसे महापुरुष देखने को मिल जाते है जो अपने उन अवगुणों को खत्म करने की जगह उन्हें अपनी शान समझ बैठते है और फिर दुनिया के सामने अपने उस महान व्यक्तित्व का परिचय देते हुए है।
"अपनी थाली पहले से खोटी है,और दूसरों की थाली में खोट ढूढ़ते हुए डोलते है"
यदि आपने अपना कोई अवगुण पहचान लिया है तो उसे समय रहते ही दूर कर लेना चाहिए नहीं तो वह अवगुण उस दीमक की तरह है जो उस लकड़ी को पूरा तरह खत्म कर देगी।
Namaste
Jai shree Yamune
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