।।संस्कार।।
।।जय श्री यमुने।।
जीवन में हर कोई व्यक्ति की एक ही इच्छा रहती है। एक अच्छा सा घर हो, पत्नी हो, गाड़ी हो प्रत्येक सुख सुविधा हो लेकिन उस सुख सुविधा का आनन्द लेते लेते वह व्यक्ति अपने संस्कारो को खो बैठता है जिसका असर उस व्यक्ति के साथ उसके आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ता है। और जिसका नतीजा हमें आजकल वृद्धाश्रमों में देखने को मिल जाता है। एक समय ऐसा जब माता पिता ऊँगली पकड़कर बच्चे को बाहर घुमाने ले जाता है, और एक समय ऐसा आजाता है जब बच्चा अपने माता पिता को बाहर का रास्ता दिखा देता है। यह सब संस्कारों ही खेल है। जब मनुष्य अपने संस्कारों से, अपने धर्म से, अपने कर्म से विमुख हो जाता है तब उसे कुछ इसी प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है।
इसी प्रकार कहा भी गया है- "बोये बीज बबूल के तो आम कहाँ से पाये" इसलिये अपने बच्चों के लिए आपका पहला कर्तव्य है उन्हें संस्कारशील बनायें उन्हें सदाचरण दें।
Namaste
Jai shree Yamune
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