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Jai Hind

https://brajabs.wordpress.com/2018/01/26/jay-hind/

Jai Shree yamune

।।जय श्री यमुने।। ऊधौ मन ना भये दस-बीस एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस॥1॥  भ्रमर गीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को बर्ज संदेस लेकर भेजा जाता है और उद्धव जो हैं योग और ब्रह्म के ज्ञाता हैं उनका प्रेम से दूर दूर का कोई सरोकार नहीं है। जब गोपियाँ व्याकुल होकर उद्धव से कृष्ण के बारे में बात करती हैं और उनके बारे में जानने को उत्सुक होती हैं तो वे निराकार ब्रह्म और योग की बातें करने लगते हैं तो खीजी हुई गोपियाँ उन्हें काले भँवरे की उपमा देती हैं। बस इन्हीं करीब १०० से अधिक पदों का संकलन भ्रमरगीत या उद्धव-संदेश कहलाया जाता है। कृष्ण जब गुरु संदीपन के यहाँ ज्ञानाजर्न के लिये गए थे तब उन्हें बर्ज की याद सताती थी। वहाँ उनका एक ही मित्र था उद्धव, वह सदैव रीत-नीति की, निर्गुन ब्रह्म और योग की बातें करता था। तो उन्हें चिन्ता हुई कि यह संसार मात्र विरिक्तयुक्त निर्गुन ब्रह्म से तो चलेगा नहीं, इसके लिये विरह और प्रेम की भी आवश्यकता है। और अपने इस मित्र से वे उकताने लगे थे कि यह सदैव कहता है, कौन माता, कौन पिता, कौन सखा, कौन बंधु। वे सोचते इसक

Video dedicated to parabuji (Acharya Bhuvnesh Shukla)

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||Jay Shree Yamune||

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                                                    ।।जय श्री यमुने।।शुभप्रभात्।।                                                                                    कृष्णातीरे  कोकिलाकेलिकीरे।                                                                                      गुंजापुन्जे देवपुष्पादीकुंजे।।                                                                                    कम्बुग्रीवौ क्षिप्तबाहू चलन्तौ।                                                                                 राधाकृष्णौ मङ्गलम् मे भवेताम्।।                                   श्री यमुना जी का पावन तट जहाँ युगल जोड़ी परमाराध्य प्रियाप्रियतम जी सदा विहार करते है। ऐसे परम् मनोहर तट जहाँ श्री युगलजोड़ी सरकार विराजमान है वहाँ पारिजात आदि एवं अत्यंत शोभनीय वृक्ष श्री कृष्णा जी(यमुना जी) की अद्भुत छटाँ को और ज्यादा मनोहारी बना रहे है। श्री यमुना जी के साथ ठाकुर जी नित्य विहार में सदा दर्शनीय है। ठाकुर जी की परम् प्रिया होने के कारण न तो ठाकुर जी ही और न ही यमुना जी एक दूसरे से कभी अलग होते